खामोश तुम भी थे.
ओर
खामोश हम भी रह गये...
ना बोले तुम कुछ...
ओर
ना हमने भी कुछ कहा...
फिर इतनी देर से कों था जो बोलता रहा...???
ओर
खामोश हम भी रह गये...
ना बोले तुम कुछ...
ओर
ना हमने भी कुछ कहा...
फिर इतनी देर से कों था जो बोलता रहा...???
ये खामोशी हमारे दिल ओर दिमाग़ की ज़ूबा बन जाती है.लेकिन ऐसा हर बार तो नही होता..ओर जब भी होता है बिना वजह भी तो नही होता ना...लेकिन ये बात हमे समाज ही नही आती..इसीलिए हम दूसरो की खमोषी को कभी उनकी कमज़ोरी तो कभी बेबसी का नाम दे आते है..
कई बार होता है ना हम कुछ बोलना चाह रहे होते है पर बोल नही पाते..ऐसा क्यू...???
ऐसा तभी होता है..जो बात बोलकर हम जितना पाने वाले है उसे कई ज़्यादा खो भी सकते है... जब पाने से ज़्यादा खोने का दर सताए तब कुछ पाने की चाह ही क्यू करे....???
पर हमे कभी किसीकि खमोषी को उसकी कमज़ोरी नही समजना चाहिए..इन आँखो के आँसू हर बार बेबसी या कमज़ोरी के तो नही हो सकते ना...हमे उन आँखो का दर्द भी तो समज आना चाहिए ना..लेकिन हर बार ये खामोसी सही नही होती..कभी कभी चीज़े सुधरने की बदले बिगड़ भी तो सकती है ना...
लेकिन ये खमोषी की ज़ूबा समाज आए तो ही मज़ा है..वरना किसीकि ये खमोशी तो सज़ा है जनाब.....
ऐसा तभी होता है..जो बात बोलकर हम जितना पाने वाले है उसे कई ज़्यादा खो भी सकते है... जब पाने से ज़्यादा खोने का दर सताए तब कुछ पाने की चाह ही क्यू करे....???
पर हमे कभी किसीकि खमोषी को उसकी कमज़ोरी नही समजना चाहिए..इन आँखो के आँसू हर बार बेबसी या कमज़ोरी के तो नही हो सकते ना...हमे उन आँखो का दर्द भी तो समज आना चाहिए ना..लेकिन हर बार ये खामोसी सही नही होती..कभी कभी चीज़े सुधरने की बदले बिगड़ भी तो सकती है ना...
लेकिन ये खमोषी की ज़ूबा समाज आए तो ही मज़ा है..वरना किसीकि ये खमोशी तो सज़ा है जनाब.....
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