अक्षर अपने ख़यालोमे हम अपने से बिछड़े लोगो से मिल कर रोया करते है.जब सवेरे आँखे खुलती पाई पॅल्को पे आँसू होते है...हम को ना जगा ना कभी अक्षर ये बोलकर लोग सोया तो करते है..ओर कभी कभी तो ..." ना जाने ख्वाबो मे कब मिल जाओ तुम ये बोल कर लोग फूलों को सिरहाने से रखकर भी सोया करते है....कुछ अजीब नही लगता ये सब.....!!!
वैसे ये इंसान भी कुछ अजीबसा है...कुछ समजता ही नही.कभी यहाँ तो कभी वाहा भागता ही रहता है.."मे कहती हू..!!.अरे बस यार यही रुक जा यही बस जा..कब तक भगेगा ओर आख़िर कहा तक भगेगा..?? फिर हंस कर कहता है अगर रुक गया तो सबसे पीछे छूट जाएगा ओर अगर अक बार पीछे छूट गया तो फिर भागना मुश्किल भी हो सकता है जनाब.तो रुक जाना भी तो कोई उपाय नही है..अगर भाग नही सकते तो साथ-साथ तो चला जा सकता है ना... अपनी लाइफ मई बार-बार इस तारह मजबूर होता है ये इंसान ना हर बार सबसे आगे भाग पाता है ओर ना ही रुक सकता है..
हर बार दो रही ज़िंदगी मई उलजा रहता है ये इंसान..
कुछ अजीब सा है उसका का अंदाज़..
हर बार उसके चेहरे पे राज वही बरकरार रहता है..चेहरा भी वही है. लिबास भी वही है.कोई चाहे कुछ भी कह दे इंसान के जीने का अंदाज आज भी वही है.......
कुछ अजीब सा है उसका का अंदाज़..
हर बार उसके चेहरे पे राज वही बरकरार रहता है..चेहरा भी वही है. लिबास भी वही है.कोई चाहे कुछ भी कह दे इंसान के जीने का अंदाज आज भी वही है.......
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