Thursday 20 September 2012

ज़िंदगी की ख्वाहिशें......!!!!

         वैसे तो इन आँखो मे हज़ारो  ख्वाहिशें है.. ओर हर रोज़ मन के ज़रुखे से ये  ख्वाहिशें ज़कती रहती है . रोज  इस दिल मे  ख्वाहिशें की  छोटी-मोटी  लहरे उठा करती है .हर रोज़ नया चेहरा लेकर आती है ये  ख्वाहिशें...  ख्वाहिशें का पहरा इस दिल ओर दिमाग़ पर मानो लगा ही रहता है..


            हर किसिको अपनी ज़िंदगी मई किसी ना किसी चीज़ की ख्वाइश ज़रूर होती है..किसी की  ख्वाहिशें बड़ी तो किसी को छोटी है..पर सब की  ख्वाहिशें मे अपनी अपनी खुशिया छुपी है ....वैसे तो हम  ख्वाइश को ख़ुसीया का दूजा नाम भी बोल सकते है.. क्यू की कोई कभी दुखी होने की ख्वाइश थोड़ी करता है...

           ओर अगर आप थोड़ा ओर गोर से सोचे  तो ख्वाबो ओर ख्वाइश मे सिर्फ़ नींद भर की दूरी है.. ख्वाइश इंसान खुली आँखो का फितूर है... ओर ख्वाब इंसान की बाँध आँखो का फितूर है. पर  ultimately  वो फितूर वही चीज़ो का  है जो उसके पास है  ही नही....क्यू की इस ज़िंदगी को हमेशा उसी चीज़ की चाहत होती है जो चीज़ उसके पास नही है.. जो है वो देखने का वख्त कहा..?,,पर योउ नो हर वख्त सिर्फ़ सपने सजना तो ठीक नही.क्यू की मैने सुना है.."सपने भी समुंदर की लहरों की तरह, हक़ीक़त की चट्टानों से टकरा कर टूट जाते हैं.".. ओर हम हमेशा इस ज़ॅमी को छोड़ कर आसमान को  छूने की ख्वाइश ही किया करते है ..ओर खुद को समजना छोड़ कर दुनिया को समजना चाहते है.. वो चाहता है की उसकी ख्वाइश सिर्फ़ ख्वाइश ना रह कर उसकी ज़िंदगी का सच भी बन जाए..


वैसे इंसान की ख्वाइश  को करवा कभी  रुकता ही नही.उसे " दो गज़ ज़मीन भी चाहिए....!!!!दो  गज़ कफ़न के बाद.......!!!!!!.........

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