Friday, 7 March 2014

तुम हक़ीक़त हो मेरी......!!


तुम कहते हो तुम्हे फुलो  महोबबत से है....
पर जब फूल खिलते है तुम उन्हे तोड़ लेते हों...!!!

तुम कहते हो तुम्हे बारिश से महोबबत है....
पर जब बारिश होती है तो तुम भीगने से डरते  हों...!!!

तुम कहते हो तुम्हे चाँद से महोबबत है....
पर जब चाँद निकलता है तो तुम कहाँ नज़र आते हों...!!!

तुम कहते हो तुम्हे हवाओं  से महोबबत  है....
पर जब हवा चलती है तो तुम खिड़किया बँध कर लेते हों...!!!

मूज़े दर लगता है उस वखत से जब तुम कहतो हों....!!
मूज़े तुमसे महोबबत है...!!!!

 क्यूकी सयद मे फरमाइश हू तुम्हारी..
पर तुम इबादत हो मेरी....!!

सयद मई आदत हू तुम्हारी..
पर तुम ज़रूरत हो मेरी...!!

कैसे मनालू अपने आप को इतनी आशानी से...!!

क्यू  की...
सयद मे ख्वाब हो सकता हू तुम्हारा 
पर तुम हक़ीक़त हो मेरी......!!    
      तुम हक़ीक़त हो मेरी......!!    


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