पलको मे क़ैद कुछ सपने है ...
कुछ बेगाने ओर कुछ अपने है.....
ना जाने क्या कासिष हे इन फ़िज़ाओं मे...
हर रोज़ हज़ारो नये सपने दिखना नही भूलती...
कुछ बेगाने ओर कुछ अपने है.....
ना जाने क्या कासिष हे इन फ़िज़ाओं मे...
हर रोज़ हज़ारो नये सपने दिखना नही भूलती...
उन मे से कुछ सपनो को हमने पंख जो दिए ...खुले आसमान मे उड़ने लगे...कभी बादलो छाव की मे मिल गये तो कभी तरो के साथ महफ़िल सजाई....नर्म नर्म हवओ के पल्नो मे पलने लगे..
कभी कोरे कोरे सपने रंगो से खिलने लगे...
तो कभी बिखरे बिखरे सपने अपने आप मे ही सिमटने लगे.....
हर इंसान ज़िंदगी मई हज़ारो सपने लिए जी रहा है...कई सपने ऐसे भी है जिसे सच करना इंसान के वजूद को दाव पे लगा देता है...हर किसी की आँखो मई अलग-अलग ही सही पर सपने तो है ना मेरे यारो.....!! हर कोई उस दिन की रह मे बेता है की उसका सपना हकीक़ूत का आईना बनकर उसके सामआए..
हर बार अंत का मतलब मोत ही नही ओर जीने का मतलब जिंदगी ही नहीं.....
क्यो की जिंदा तो सब है पर हर कोई जी कहाँ रहा है....सिर्फ़ साँसे चलने ओर दिल धडकना का भी तो ज़िंदगी का मतलब नही.......!!!
.क्यू की..........
क्यो की जिंदा तो सब है पर हर कोई जी कहाँ रहा है....सिर्फ़ साँसे चलने ओर दिल धडकना का भी तो ज़िंदगी का मतलब नही.......!!!
.क्यू की..........
ये सोच कर की सपने पूरे नही होंगे, सपने देखना ही छोड़ देते है लोग.....
ये सोच कर की जीवन एक संघर्ष है, हसना छोड़ देते है लोग…
ये सोच कर की कमियाबी एक अभिशाप है, उससे डरने लगते है लोग…
ये सोच कर की गिर गये तो क्या होगा, उठना ही छोड़ देते है लोग…
पर कभी कभी मेरे यारो ...
ये सोच कर की सपने पूरे ज़रूर होंगे, हज़ारो सपने बुनते है कुछ लोग…
ओर उसे पूरे करने के रास्ते भी ढूंड लेते है वो लोग…
ये सोच कर की जीवन एक संघर्ष है, हसना छोड़ देते है लोग…
ये सोच कर की कमियाबी एक अभिशाप है, उससे डरने लगते है लोग…
ये सोच कर की गिर गये तो क्या होगा, उठना ही छोड़ देते है लोग…
पर कभी कभी मेरे यारो ...
ये सोच कर की सपने पूरे ज़रूर होंगे, हज़ारो सपने बुनते है कुछ लोग…
ओर उसे पूरे करने के रास्ते भी ढूंड लेते है वो लोग…
नन्हे नन्हे कुछ सपने मंज़िल की तलस मे चल तो पड़ते है....पर कई बार वख्त आगे निकल गया सपने पीछे छूट गये...
कुछ वही रुक गये ...
कुछ टूट गये....
कुछ खुद ही पे हस्ने लगे...क्यू की ज़िंगी की दाव मे ज़िंदगी से ही हर के अब उस अधूरे सपनो के सौदे जो होने लगे...
चलते चलते खो गये अपनी ही धड्दक्नो से जुड़ा हो गये...
फिर भी रुका नई सांसो ओर धड्दक्नो का करवा
क्यू की अब भी
खुली आँखो से ही कहीं दूर मन के आसमान मे टिमटिमा रहा था एक और सपना.....!!!
nice written on dreams..........
ReplyDeleteFresh writing.............keep it up......
ReplyDeleteThank you Brijesh sir.....
ReplyDeleteThnx..... to deary sees didi...
ReplyDeleteSupperb
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